By Bhopal Samachar
Copyright bhopalsamachar
पेट्रोल-डीज़ल सिर्फ पॉकेट नहीं, आपकी सांसों के लिए भी काफी महंगे पड़ रहे हैं: ग्लोबल रिपोर्ट
personBhopal Samachar
September 18, 2025
एक नई ग्लोबल रिपोर्ट, Cradle to Grave: The Health Toll of Fossil Fuels and the Imperative for a Just Transition ने साफ़ कह दिया है, फॉसिल फ्यूल सिर्फ़ जलवायु संकट की वजह नहीं हैं, ये हमारी सेहत को गर्भ से बुढ़ापे तक नुकसान पहुँचा रहे हैं।
पेट्रोल-डीजल का धुआं को गर्भस्थ शिशु को बीमार कर देता है
पेट्रोल, कोयला, गैस – ये कहानी सिर्फ़ धुएं या कार्बन उत्सर्जन तक सीमित नहीं है। रिपोर्ट बताती है कि इनकी पूरी लाइफ़साइकल, निकासी, रिफाइनिंग, ट्रांसपोर्ट, स्टोरेज, जलाने से लेकर वेस्ट तक, हर स्टेप इंसानों की सेहत पर वार करता है। गर्भपात से लेकर बच्चों में अस्थमा, ब्लड कैंसर, स्ट्रोक, कैंसर और यहाँ तक कि मानसिक बीमारियों तक, फॉसिल फ्यूल्स का जहर हर उम्र को छू रहा है।
रिपोर्ट की लेखिका श्वेता नारायण ने साफ़ कहा, “फॉसिल फ्यूल्स सिर्फ़ कार्बन की कहानी नहीं हैं, ये दुनिया के लिए पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी हैं।” वो जोड़ती हैं कि भले ही कल से सारे कार्बन कैप्चर होने लगें, ये ज़हर तो हमारी हवा, पानी और शरीर में दशकों तक रहेगा।
सबसे डरावनी बात है कि इसका बोझ बराबर नहीं बंटा। ग़रीब और हाशिए पर खड़े समुदाय सबसे ज़्यादा भुगत रहे हैं। जैसे मोज़ाम्बिक में गैस प्रोजेक्ट्स ने किसानों की ज़मीन छीन ली, मछुआरे समुद्र से कट गए और हिंसा में हज़ारों जानें चली गईं। दक्षिण अफ्रीका के एमबालेंहले में लोग कोयला प्लांट के धुएं से पानी और हवा दोनों में जहर झेल रहे हैं। भारत के कोरबा में कोयला खदानों के पास बच्चों में अस्थमा और बुज़ुर्गों में टीबी आम हो गया है।
रिपोर्ट ये भी याद दिलाती है कि दुनिया हर साल लगभग 7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (सिर्फ़ 1.3 ट्रिलियन सीधे सब्सिडी) फॉसिल फ्यूल इंडस्ट्री पर लुटा रही है। यानी सरकारें हमारी सांसों को ज़हरीला करने पर टैक्सपेयर्स का पैसा बहा रही हैं।
ग्लोबल हेल्थ लीडर क्रिस्टियाना फिग्युरेस कहती हैं:
फॉसिल फ्यूल्स ने हमारी हवा जहरीली कर दी है, हमारी सेहत तोड़ दी है और इंसान की गरिमा को चकनाचूर कर दिया है। अब वक्त है एक Just Transition चुनने का।
यानी कहानी साफ़ है: ये सिर्फ़ क्लाइमेट की लड़ाई नहीं है, ये हमारे बच्चों की साँसों की लड़ाई है। हमारी दादी-नानी की सेहत की लड़ाई है। और सबसे बड़ी बात, ये न्याय की लड़ाई है।
क्योंकि अब सवाल ये नहीं है कि क्या हमें फॉसिल फ्यूल्स छोड़ने चाहिए, बल्कि ये है कि कब और कितनी जल्दी। और जवाब साफ़ है: अब ही। रिपोर्ट: निशांत सक्सेना।
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
Facebook पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289
EditorialInternationalNational
You Might Like